Wednesday 6 July 2011

सांप्रदायिक हिंसा विधेयक-एक काला कानून


सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011

यूपीए सरकार द्वारा गठित राष्ट्रीय सलाहकार समिति (http://nac.nic.in/) ने पिछले महीने सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011 को चर्चा और सुझावों के लिए आम जनता के सामने रखा था. ये विधेयक यूपीए सरकार द्वारा 2005 में बनाया गया था. तब से लेकर अब तक इसके मसौदे में काफी बदलाव आ चुका है. विधेयक द्वारा बेशक कुछ अच्छा होने की बात कही जा रही हो लेकिन इसके पीछे की मंशा एक समुदाय विशेष को खुश करना है जिसका इस्तेमाल वोट बैंक के रूप में किया जा सके और एक धर्म विशेष के लोगों को प्रताड़ित करना है.

किसी शायर ने कहा है कि "गुनाहगारों में शामिल हूँ, गुनाहों से नहीं वाकिफ, सजा तो जानता हूँ मैं, खुदा जाने खता क्या है" इस विधेयक के पास होने के बाद अर्थात कानून बनाने के बाद बहुसंख्यकों अर्थात हिन्दुओं की हालत भी कुछ ऐसी ही होगी. उन्हें सिर्फ इसलिए सजा मिलेगी क्योंकि वो बहुसंख्यक हैं, हिन्दू हैं.

विधेयक में यह स्पष्ट कहा गया है कि हिंसा, बलात्कार या घृणा सम्बन्धी प्रचार तभी अपराध मना जाएगा जब वो अल्पसंख्यकों के साथ किया गया हो. यदि किसी अल्पसंख्यक लड़की या महिला के साथ कुछ गलत किया जाता है तो वो अपराध होगा लेकिन यदि वैसे ही किसी बहुसंख्यक महिला के साथ किया जाता है तो वो कतई अपराध नहीं है. वहां पर विधेयक में कोई प्रावधान नहीं है. हिंसा और घृणा का प्रचार के मामले में भी इसी तरह अपराधी निर्धारित किया जाएगा. इस प्रकार लोकतंत्र और संविधान की मूल भावना पर चोट करके ये विधेयक बनाया गया है. संविधान में जगह-जगह समानता की बात की गई है लेकिन इस विधेयक का तो आधार असमानता है. विधेयक में धर्म और भाषाई आधार पर असमानता को तरजीह दी गई है.

विधेयक में दिए गये सभी प्रावधान साफ़-साफ़ एक वर्ग विशेष के तुष्टिकरण की ओर इशारा करते हैं. विधेयक में ये बात स्पष्ट तौर पर मान ली गई है कि केवल बहुसंख्यक वर्ग द्वारा ही हिंसा फैलाई जा सकती है,  अल्पसंख्यक तो हिंसा कर ही नहीं सकते और सिर्फ इसलिए क्योंकि वो अल्पसंख्यक हैं.

विधेयक में ये भी प्रावधान किया गया है कि सांप्रदायिक हिंसा के दौरान पूरी सरकारी मशीनरी अल्पसंख्यकों की खिदमत में लग जाए और बहुसंख्यकों वर्ग के अधिक से अधिक लोगों को दंड दिलाने का प्रयास करे. अतः अगर कहीं दंगा होता है तो पुलिस या अन्य सरकारी मशीनरी इस बात की जाँच नहीं करेगी कि दंगा किसने किया या उसके कारण क्या थे बल्कि उनका काम ये देखना होगा कि दंगे में बहुसंख्यक लोग कौन-कौन शामिल थे.

सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बेशक पीड़ित बहुसंख्यक समाज हो लेकिन विधेयक केवल अल्पसंख्यकों को ही पीड़ित होने का प्रमाण पत्र प्रदान करता है, अतः बहुसंख्यक यानि हिन्दू पीड़ित हो ही नहीं सकते. इस प्रकार विधेयक एक वर्ग को ही हमेशा पीड़ित होने की गारंटी प्रदान करता है चाहे 50 अल्पसंख्यकों ने मिलकर 5 बहुसंख्यकों को मारा हो.
    
विधेयक में सजा देने का जो प्रावधान किया गया है वो भी आश्चर्यजनक है और न्याय की मूल धरना के विपरीत है. सजा देने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जाएगी उसमें धारा 161 के तहत बयान रिकॉर्ड करने की बजाय 164 के तहत बयान दर्ज किए जायेंगे अर्थात सीधे अदालत के सामने बयान होंगे. साथ ही यदि किसी व्यक्ति पर घृणा के प्रचार सम्बन्धी आरोप लगाया जाता है तो उसे तब तक दोषी मना जाएगा जब तक कि वो निर्दोष सिद्ध नहीं हो जाता. जबकि न्याय के अनुसार कोई व्यक्ति तब तक दोषी या अपराधी नहीं मना जाता जब तक कि उस पर दोष सिद्ध न हो जाए. इस मामले में आरोप ही सबूत का काम करेगा यानि यदि किसी अल्पसंख्यक ने किसी बहुसंख्यक पर आरोप मात्रा भी लगा दिया तो वो दोषी मान लिया जाएगा.

विधेयक के द्वारा सरकारी मशीनरी, पुलिस, सशस्त्र बल, लोकसेवकों आदि को भी एक वर्ग विशेष के हित में कार्य करने का दबाव बनाया जा सकता है या एक वर्ग विशेष द्वारा उनके ब्लैकमेलिंग की पूरी-पूरी सम्भावना बनी रहेगी. 

विधेयक के खंड 12 के अनुसार कोई सरकारी कर्मचारी यदि किसी समूह विशेष के व्यक्ति को पीड़ा पहुंचता है या मानसिक अथवा शारीरिक चोट पहुंचता है तो उसे यातना दिए जाने के अपराध में दण्डित किया जा सकता है. खंड 13  के अनुसार कोई सरकारी व्यक्ति इस विधेयक में उल्लिखित अपराधों के सम्बन्ध में अपनी ड्यूटी निभाने में ढिलाई बरतता है तो वो दंड का भागी होगा. खंड 14 में उन सरकारी व्यक्तियों को दंड का प्रावधान है जो सशस्त्र बालों पर नियंत्रण रखते हैं और अपनी कमान के लोगों पर कारगर ढंग से अपनी ड्यूटी निभाने हेतु नियंत्रण रखने में असफल रहते हैं. इसी प्रकार इस विधेयक के द्वारा लोकसेवकों पर बिना किसी सरकारी अनुमति के मुकदमा चलाया जा सकता है. ऐसे में स्पष्ट है कि लोकसेवक पर एक वर्ग विशेष के हित में कार्य करने के लिए व्यापक दबाव रहेगा.
विधेयक में सांप्रदायिक सौहार्द, न्याय और क्षतिपूर्ति के लिए एक राष्ट्रीय प्राधिकरण गठित किया जाएगा. इस सात सदस्यीय प्राधिकरण में भी धर्म और भाषाई आधार पर जमकर भेदभाव किया जाएगा. 7 सदस्यों में से कम से कम 4 सदस्य, जिसमें दो वरिष्ठतम पद अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी शामिल हैं, अल्पसंख्यक होने चाहिए. राज्यों पर भी इसी आधार पर राज्य प्राधिकरण गठित किया जाएगा. सरकारों को इस प्राधिकरण को पुलिस और अन्य दूसरी जांच एजेंसियों उपलब्ध करानी होंगी. प्राधिकरण के पास किसी शिकायत की जाँच करने, किसी ईमारत में घुसने, छापा मारने, खोजबीन करने का अधिकार होगा. प्राधिकरण सशस्त्र बालों पर भी नियंत्रण रख सकेगा और केंद्र एवं राज्य सरकारों को परामर्श जारी कर सकेगा.

अतः कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी की सुपर कैबिनेट ने एक ऐसा बिल तैयार किया है जिसके बाद बहुसंख्यक यानि हिन्दू अपंग हो जायेंगे. पुलिस, सशस्त्र बल आदि पंगु हो जायेंगे. अपराधी और पीड़ित किसी दंगे से पहले ही घोषित हो जाएगा. इस विधेयक को पूरा पढने के लिए इस लिंक पर (http://nac.nic.in/pdf/pctvb_amended.pdf) क्लिक करें.

4 comments:

  1. We must wake-up till its too late !!! Oppose Communal Bill strongly !!

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  2. hum is vidheyak ko paas nahi hone denge

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  3. hum iski ghor ninda karte hain

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  4. ye angrejo ke manas - putr hai.....inka bas ek hi kaam hai "foot dalo aur satta pao"....in madam ke mayeke ( itly ) ka itihaas to yahi hai.... isliye mujhe kuchh khas hairani nahi hai....unse yahi umeed ki ja sakti hai....

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