Tuesday 28 February 2012

नवदृष्टि के जनक - बुद्धिवादी वीर सावरकर

शिरीष सप्रे
वीर सावरकरजी ज्ञानमार्गी होने के साथ ही हर एक विषय का स्वतंत्र एवं मूलगामी विचार करनेवाले होने के कारण उनकी विचार सृष्टि बहुरंगी है। जिसके कारण जनसाधारण मंत्रमुग्ध सा हो जाता है। बुद्धि प्रामाण्यता एवं इहवादी दृष्टिकोण होने के कारण कई बार वे चार्वाकवादी भी लगते हैं। क्योंकि, इहलोक और केवल इहलोक को माननेवाला व्यक्ति और समाज के हित देखने के लिए दंडनीति  को माननेवाले चार्वाक का विचार करें और सावरकरजी के बुद्धिवादी सामाजिक मतों को देखें तो वे चार्वाक कुल के ही लगते हैं।
सावरकरजी के सामाजिक विचारों के महत्वपूर्ण सूत्र हैं बुद्धिप्रामाण्य और प्रत्यक्षनिष्ठा और इसी विज्ञाननिष्ठ भूमिका से उन्होंने हिंदूधर्म की सामाजिक रुढ़ियों की समीक्षा की थी। उदा. 1935 में डॉ. आंबेडकरके संभावित धर्मांतरण के संबंध में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था ''चाहें तो डॉ. आंबेडकर एक बुद्धिवादी संघ निकालें।"" इस पत्रक में सावरकरजी ने इस बुद्धि संघ के आधार तत्त्वों

Friday 24 February 2012

भारत के इस्लामीकरण का खतरा

अभी कुछ दिनों पूर्व जब मैंने अपने एक मित्र और नवसृजित राजनीतिक आन्दोलन युवादल के राष्ट्रीय संयोजक विनय कुमार सिंह के साथ पश्चिम बंगाल की यात्रा की तो भारत पर मँडरा रहे एक बडे खतरे से सामना हुआ और यह खतरा है भारत के इस्लामीकरण का खतरा। पश्चिम बंगाल की हमारी यात्रा का प्रयोजन हिन्दू संहति के नेता तपन घोष सहित उन 15 लोगों से मिलना था जिन्हें 12 जून को हिन्दू संहति की कार्यशाला पर हुए मुस्लिम आक्रमण के बाद हिरासत में ले लिया गया था। तपन घोष को गंगासागर और कोलकाता के मध्य डायमण्ड हार्बर नामक स्थान पर जेल में रखा गया था। हम अपने मित्र के साथ 23 जून को कोलकाता पहुँचे और दोपहर में पहुँचने के कारण उस दिन तपन घोष से मिलने का कार्यक्रम नहीं बन सका और हमें अगली सुबह की प्रतीक्षा करनी पडी। अगले दिन प्रातः काल ही हमने सियालदह से लोकल ट्रेन पकडी और डायमण्ड हार्बर के लिये रवाना हो गये। कोई दो घण्टे की यात्रा के उपरांत हम अपने गंतव्य पर पहुँचे और जेल में तपन घोष सहित सभी लोगों

Thursday 9 February 2012

कामरेड ईसा मसीह?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
आजकल केरल में बड़ी मजेदार राजनीतिक बहस चल रही है। इस बहस में अभी तो सिर्फ स्थानीय कम्युनिस्ट नेता और पादरी लोग ही उलझे हैं, लेकिन यह बहस यदि थोड़ी लंबी जाए तो यह विश्व-स्तर की भी बन सकती है। यह तो सबको पता है कि 10-15 वर्षों से विश्व के सारे कम्युनिस्ट अपने आप को अनाथ-सा महसूस कर रहे हैं। सोवियत संघ खुद तो बिखर ही गया, अब लेनिन और स्टालिन भी इतिहास के नेपथ्य में चले गए। चीन ने भी पूंजीवादी रास्ता पकड़ लिया। पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देश अब पश्चिमी यूरोपीय संघ के सदस्य बनते चले जा रहे हैं। ऐसे में हमारे भारत के मार्क्सवादियों ने जबर्दस्त वैचारिक पैंतरा मारा है। यह पैंतरा, भारत में ही नहीं, सारे विश्व में तहलका मचा सकता है।

Sunday 5 February 2012

कट्टरता के समक्ष समर्पण

यह प्रश्न तसलीमा नसरीन ने भारतीय नेताओं, बुद्धिजीवियों से पूछा है। तस्लीमा की आत्मकथा निर्वासन का विमोचन समारोह कोलकाता पुस्तक मेले में रद कर दिया गया, क्योंकि इस्लामी कट्टरपंथियों ने विरोध किया। पुस्तक अभी सामने भी नहीं आई, पढ़ना तो दूर रहा। लेखिका भी कार्यक्रम में उपस्थित न रहने वाली थीं। फिर भी कट्टरपंथियों को मेले में उसके विमोचन पर आपत्ति थी। उनकी धमकी के बाद अधिकारियों ने कार्यक्रम रद कर दिया। इसी पर तसलीमा ने भारतवासियों से पूछा है कि मजहबी कट्टरपंथियों से कितने समय तक डरेंगे?
यह प्रश्न हमारे दो महापुरुषों की उक्ति भी याद दिलाता है। पहली श्रीअरविंद की, जब उन्होंने सौ वर्ष पहले (4 सितंबर 1909) उसी बंगाल में विविध मुस्लिम आपत्तियों और उन्हें संतुष्ट करने के प्रयासों पर कहा था कि प्रत्येक ऐसा कार्य जिस पर कुछ मुसलमानों को आपत्ति हो अब वर्जित कर दिया जा सकता है, क्योंकि उससे शांति भंग हो सकती है और कुछ-कुछ ऐसा लगने लगा है कि कहीं वह दिन न आ जाए जब इसी तर्कसंगत आधार पर हिंदू मंदिरों में पूजा करना भी वर्जित कर दिया जाए। दूसरा कथन 1946 में डॉ. अंबेडकर का था कि मुसलमानों की मांगें हनुमानजी की पूँछ की तरह बढ़ती जाती हैं।
इन दोनों कथनों के साथ तसलीमा के प्रश्न को जोड़कर देखने-समझने की आवश्यकता है। यदि तसलीमा की बात में

Wednesday 1 February 2012

क्या पश्चिम बंगाल में हनुमान जी की मूर्ति पर प्रतिबन्ध है ?


कोलकाता में बजबज इलाके के चिंगरीपोटा क्षेत्र में रहने वाले एक व्यवसायी श्री प्रशान्त दास ने अपने घर की बाउंड्रीवाल के प्रवेश द्वार पर बजरंग बली की मूर्ति लगा रखी है। 14 अगस्त की रात को बजबज पुलिस स्टेशन के प्रभारी राजीव शर्मा इनके घर आये और इन्हें वह मूर्ति तुरन्त हटाने के लिये धमकाया। पुलिस अफ़सर ने यह कृत्य बिना किसी नोटिस अथवा किसी आधिकारिक रिपोर्ट या अदालत के निर्देश के बिना मनमानी से किया। 

पुलिस अफ़सर का कहना है कि उनके मुख्य द्वार पर लगी बजरंग बली की मूर्ति से वहाँ नमाज़ पढ़ने वाले मुस्लिमों की भावनाएं आहत होती हैं। पुलिस अफ़सर ने उन्हेंसमझाया”(?) कि या तो वह बजरंग बली की मूर्ति का चेहरा घर के अन्दर की तरफ़ कर लें या फ़िर उसे हटा ही लें। स्थानीय मुसलमानों ने (मौखिक) शिकायत की है कि नमाज़ पढ़ते समय इस हिन्दू भगवान की मूर्ति को देखने से उनका ध्यान भंग होता है और यह गैर-इस्लामिक भी है। 

उल्लेखनीय है कि उक्त मस्जिद प्रशान्त दास के मकान के पास स्थित प्लॉट पर