Thursday 22 December 2011

हिन्दुओं का आखिर दुश्मन कौन ?

आये दिन समाचार मिलते रहते हैं कि अमुक स्थान पर इतने हिन्दुओं ने ईसाई या इस्लाम धर्म कबूल कर लिया | सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि आखिर धर्म परिवर्तन का विकल्प केवल हिन्दुओं के लिए ही क्यों खुला है ?अब दो ही कारण हो सकते हैं कि या तो हिन्दू स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन कर रहे हैं या परिच्छा से अर्थात किसी मजबूरी से अर्थात उनसे उनकी इच्छा के विरुद्ध उनको अन्य धर्मों मे जबरदस्ती परिवर्तित किया जा रहा है | कहने को तो कुछ भी तर्क वितर्क दे दो परन्तु इतना तो बिलकुल सत्य है कि सुबह उठते  ही शायद ही कोई मनुष्य मांस भक्षण शुरू कर दे हालांकि कुछ अपवाद हो सकते हैं परन्तु स्वाभाविक रूप से नैसर्गिक सिद्धांत से भी मनुष्य शाकाहारी है क्योंकि उसकी आंतें भी अन्य शाकाहारी जीवों के तरह ही लम्बी होती हैं जो एक विशेष पदार्थ सेलुलोज को पचाने मे सहायक होती हैं जो कि वनस्पतियों मे ही पाया जाता है इसलिए स्वाद या जिव्हा के चटकारे हेतु ही कोई मनुष्य उन धर्मों को स्वीकार नही करेगा जिनमे मांसभक्षण ज्यादा होता है |
और अब तो मांसभक्षी धर्मों के अनुयायी भी शाकाहार को ही पसंद करने लगे हैं | कभी किसी ईसाई या मुस्लिम धर्म के अनुयायी को भी क्या कहीं हिन्दू बनते देखा है, शायद नही देखा होगा, अतः यह नहीं कह सकते कि उनको शाकाहार तो पसंद है लेकिन सिर्फ  शाकाहार के लिए वे हिन्दू बन जायें | इसलिए भोजन व्यंजन कोई कारण नही अतः अन्य कारण खोजने ही होंगे |

स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन कोई सरल कारण स्पष्ट नही होता क्योंकि इन धर्मों मे ऐसी कोई विशेष बात तो है नही कि हिन्दू इसमें जाने को लालायित रहें | तो कारण है मजबूरी, जी हाँ! मजबूरी, अब यह मजबूरी  क्या हो सकती है | इस पर थोड़ा सा गौर करें|
कारण नंबर एक – जिंदगी हर व्यक्ति को अच्छी लगती है क्योंकि मरना कोई नही चाहता | और वैसे भी एक कहावत प्रचलित है कि “मरता क्या न करता” अब यह कहावत किसने बनायी और क्यों बनायी इसका उत्तर मेरे पास नही है परन्तु है यह बहुत सार्थक है | अब हिन्दुओं को कोई क्यों मारेगा जाहिर है शायद वह हिन्दू उस आततायी की कोई बात ना मान रहा हो | आततायी कोई आज से ही भारत मे नही है बल्कि मुसलमानों के आक्रमण से यह परंपरा चली आ रही है अगर भारत में सिक्ख मत न होता न तो शायद आज भारत मे हिन्दू भी न होते | इतिहास गवाह है कि सिक्खों की ही कुर्बानियां ही हिन्दुओं की रक्षा कवच हैं इसलिए भारत का हर हिन्दू सिक्ख गुरुओं का एहसान मंद है अगर सिक्ख गुरुओं ने मुग़लों से लोहा नही लिया होता तो सोचो क्या हाल भारत का हुआ होता ? अब हिन्दुओं पर दबाब क्यों डाला जा रहा है कि वे दबाब मे आकर इस्लाम या ईसाई धर्म कबूलें |
जहां जहां हिन्दू अल्पमत अल्पसंख्यक हैं वैसे तो भारत मे अगर सच्चाई से जांच हो वास्तव मे अब हिन्दू “बहुमत अल्पसंख्यक” ही निकालेंगे, उस स्थानीय क्षेत्र मे अन्य धर्मों के अनुयायी ही हावी होंगे अतः अब चाहे उनको वह जिन्दा रहने के लिए या कारोबार करने देने के लिए उनके सामने यह विकल्प छोड़ा गया हो कि यहाँ रहना है तो ईसाई बनो या मुसलमान | कहते हैं ना कि “लंका मे रहना है तो रावण को सहना है” | तो पहला कारण यही हुआ कि आजीविका चलाने के लिए उनको अन्य धर्मों मे जाना पड़ता है |
कारण नंबर दो – सबसे प्रमुख कारण है परिवार की मान मर्यादा | हिन्दुओं मे कन्यायों और स्त्रियों को परिवार की इज्जत कहा जाता है और हो सकता है कि परिवार की मान मर्यादा या इज्जत बचाने के कारण ही हिन्दुओं को इस्लाम या ईसाई बनना पड़ता हो | यह कहना गलत नही होगा कि जिन जिन धर्मों मे बहुस्त्रियों से साथ विवाह अनुमान्य है वहां  स्त्रियों को मात्र भोग विलास का सामान ही समझा जाता है, अतः उनके मन मे स्त्रियों के लिए कोई सम्मान ही नही होता है | वहां स्त्रियाँ प्रताड़ित की जाती हैं भारत के कई अस्त्पतालों  मे आज भी मुस्लिम स्त्रियाँ दवाईयां खरीदती या डाक्टर को दिखाती दिख जायेंगी अगर भारत के अस्त्प्तालों मे मरीजों का जातिगत अनुपात निकालें तो बहुमत प्रतिशत मुस्लिम के पक्ष मे ही जायेगा और ज्यादातर को क्षय रोग ही निकलेगा | और जहां जहां हिन्दू अल्पसंख्यक हैं वहां वहां हिन्दुओं के रक्षा तो वैसी ही राम भरोसे है इसलिए हो सकता है कि स्त्रियों या कन्यायों की रक्षा हेतु ही वहां के हिन्दुओं को मजबूरीवश अन्य धर्म  कबूलना पड़ता हो |
कारण नंबर  तीन- तीसरा कारण है कि व्यापार चलाने हेतु या रोजगार हेतु प्रलोभन के चक्कर मे हिन्दू अन्य धर्मों मे जाते हों | यह बात ईसाईयों के लिए तो ठीक है परन्तु इस्लामिक देशों मे तो भारत से केवल मजदूर ही बुलाये जाते हैं | इस्लामिक देशों मे काम मजदूरी करने वाले ज्यादातर मजदूर भारत से ही जाते हैं जिनका एक पूर्ण संगठित गेंग है जो यहाँ से भारतीय हिन्दुओं को ही नही बल्कि मुसलमानों तक को  बरगलाया जाता है, और झूठा लालच देकर इस्लामिक देशों मे उनसे मेहनत मजदूरी कराई जाती है  | भारत मे इस्लामिक धर्म कबूलने के तो किस्से उन्ही जगह ज्यादा हैं जहां इसी धर्म के अनुयायियों की सरकार है परन्तु ईसाई धर्म कबूलवाने के किस्से तो लगभग सभी शहरों मे हैं | उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के कई गाँव मे कई अनुसूचित जाति जनजाति  के लोग स्वेच्छा से ईसाई बने हुए हैं और भी कई जगह ऐसी हैं जैसे कुछ बुलंदशहर मे, कुछ मुरादाबाद मे मेरठ मे लखनऊ मे भी कई परिवार ऐसे हैं जिनके नाम हैं तो हिन्दुओं जैसे ही परन्तु उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार हुआ है | जैसे सुनील अनिल प्रदीप आदि जो सुनने मे हिन्दू लगेंगे परन्तु हैं वे ईसाई ही हैं | ये किसी दबाब मे नही बल्कि लालच से ईसाई बने हैं क्योंकि ईसाई बनने पर उनको नौकरी मिल जाती है या शिक्षा मे सहायता या खाने पीने मे मदद | मैंने कई मिशनरियों मे हिन्दू नाम वाली स्त्रियों को काम करते देखा है परन्तु वे ईसाई धर्म कबूल कर चुकी हैं ऐसे ही कई चर्चों के पादरी या प्रीस्ट तक हिन्दू नामधारी होने के बाबजूद भी ईसाई ही हैं |
प्रश्न यह है कि आज हम ये बात क्यों उठा रहे हैं कि भारत मे हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन हो रहा है | क्या कोई हिन्दुओं का रक्षक इस देश मे है ? कितने हिन्दू ऐसे हैं जो आगे आकर भारत के हिन्दुओं की मदद को आते हैं ? कितने हिन्दू ऐसे हैं जो आज काश्मीर में जाकर वहां के हिन्दुओं की रक्षा करने या उनकी आर्थिक मदद को जाते हैं ? कश्मीर घूमने तो जाते हैं और वहां के हिन्दुओं की दुर्दशा का मजाक उड़ाते हुए हिन्दुओं को शर्म नही आती है  | कितने बड़े शर्म की बात है कि एक ओर तो हम अपने को हिन्दू भी कहें और अपने ही भाई बंधुओं का मजाक भी उड़ायें | कुछ वर्षों पहले एक संगठन ने कुछ स्टीकर छपवाए थे कि गर्व से कहो हम हिन्दू हैं, क्या आज है किसी में हिम्मत जो अपने घर के बाहर ही हिन्दू निवास लिख सके अपने को सार्वजानिक स्थान पर हिन्दू कह सके ? अगर अपने को कोई हिन्दू कहता भी है  तो पहले अपने इर्द गिर्द झाँक कर देखता है कि कोई सुन तो नही रहा | अरे जब यह हालत हमारी अपने ही क्षेत्र मे है तो अंदाज लगाईये कि जहां हिन्दू अल्पसंख्यक स्थति मे होंगे उनकी क्या हालत होगी ? उनकी कैसे स्थति होगी ? उनकी क्या परेशानी होगी ? कौन दोषी है हिन्दुओं की दुर्दशा का ? आज जो हिन्दू नेता सरे आम मुसलमानों के आरक्षण या सुधार या सहायता की वकालत करते हैं क्या हममें से किसी ने उनका विरोध किया बल्कि उनकी चापलूसी करते ही दीखते हैं | कभी किसी मुसलमान नेता या ईसाई नेता को हिन्दुओं की वकालत या हिन्दुओं के प्रति दो मीठे शब्द ही बोलते देखा सुना है ? अगर आज ही हमारे दरवाजे पर कोई हिन्दू भीख मांगने आ जाये तो घर से भगा देंगे और अगर इसी भिखारी को कोई ईसाई मिशनरी अपना ले तो कहते हैं कि हिन्दुओं का ईसाईकरण हो रहा है | अगर ऐसे ही किसी हिन्दू भिखारी को कोई
मुसलमान शरण देकर इस्लाम धर्म कबूलवा दे तो कहते हैं कि हिन्दुओं का इस्लामीकरण हो रहा है |
सीखो ! ईसाईयों या मुसलमानों से कि वे अपने धर्म के प्रति कितने ईमानदार हैं ? उनमे कितनी क्षमता है कि हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराने की क्षमता रखते हैं | जो भारत मे ही रहकर भारत के ही  हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करा सके तो सोचो कि वे कितने संगठित हैं ? आखिर ऐसे क्या खूबी है उनमे जो वे इतने शक्तिशाली है ? उनकी शक्ति है उनका संगठित होना | हम आपस मे ही जूतम पैतार मे लगे हैं | हम उन नेताओं को वोट देते हैं जो खुले आम हिन्दुओं का अपमान करके हिन्दुओं के ऊपर मुसलमानों को थोपने को राजनीति कहते हैं और हिन्दुओं के दमन को भी राजनीति कहते हैं | क्या उन नेताओं को यह समझ नही है कि वे क्या कर रहे हैं उनको भली भांति पाता है कि वे हिन्दुओं का गला घोंट रहे हैं परन्तु दोष उनसे ज्यादा हमारा है कि हम जानबूझकर अपना गला उनके सामने परोस रहे हैं | वे हमसे हैं नाकि हम उनसे |
जब तक यह सिद्धांत समझ मे नही आएगा तब तक हिन्दुओं का दमन होता रहेगा | केंद्र सरकार अभी एक बिल लेकर आई थी जिसमे अल्पसंख्यक सम्प्रदाय की रक्षा कवच का प्रस्ताव था तो क्या भारत के सारे हिन्दू संगठित हो गये क्या हिन्दू सडकों पर आये क्या हिन्दुओं ने कोई धरना प्रदर्शन किया बस हुआ क्या कुछ लेख छपे कुछ भाषण हुए और कुछ आडिटोरियम बुक हुए | हो गया विरोध ?
आज हिन्दू क्यों प्रताड़ित है क्योंकि हिन्दू संगठित नही है | अगर हम कश्मीर मे जाकर हिन्दुओं के उत्थान हेतु कुछ करें या काश्मीर मे जाकर हिन्दुओं के पुनर्वास हेतु कुछ करें तो बात सार्थक नजर आती है वरना ऐसे लेखो से क्या होना है ? पाकिस्तान से कुछ हिन्दू परिवार भारत मे क्या आ गये कि भारत की सुरक्षा एजेंसिया हरकत मे आ गयीं और उनको वापिस खदेड़कर ही दम लिया और रोजाना ही भारत मे पाकिस्तान से या बंगलादेश से सेकड़ों मुसलमान भारत मे आते हैं उनके विरुद्ध कुछ नही ? पाकिस्तान के तटवर्ती  सीमाप्रन्तों मे कोई भी मुख्यमंत्री मुसलमान या ईसाई नही है और न ही केंद्र सरकार का प्रधान मंत्री या गृह मंत्री मुसलमान है और ना ही माननीय सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायधीश ही मुसलमान है या तब सबके सब काश्मीर के हिन्दुओं के प्रति संवेदनशील क्यों नही ?क्यों
नही ? जानना चाहते हैं , क्यों नही ? क्योंकि भारत के सारे हिन्दू ही संवेदनशील नही ? जिन नेताओं को हमने ने संसद या विधान सभा भेजा हम उनसे यह कहने की हिम्मत तो बहुत बड़ी बात बल्कि उनसे यह अपेक्षा तक नही की कि आखिर वे हमसे पूछें कि आखिर वे हमारी वोट तो चाहते हैं परन्तु उन्होंने हिन्दुओं के लिए करा ही क्या है ? एक आचार्य ने रामचरितमानस मे दोष क्या निकाले बस उसकी छीछालेदर मे तो लग गये परन्तु एक भी भगवा वस्त्रधारी या हिन्दू नेता या हिन्दू सांसद काश्मीर नही गया ? आखिर क्यों ? हर किसी राजनितिक पार्टी ने अल्पसंख्यक मोर्चा खोला हुआ है या अपने दल मे अल्पसंख्यक कोष्ठ बनाया हुआ क्या कभी किसी मुसलमान की या ईसाई की पार्टी मे भी हिन्दुओं का ऐसा कोई कोष्ठ देखा है ?
इसलिए मैं कहती हूँ कि वर्तमान समय मे हिन्दुओं को सबसे पहले एक मंच पर आना होगा और सबके सब हिन्दू एक सूत्र मे बंधे और जो भी हिन्दू संगठित होने का विरोध करे उसका बहिष्कार करें, कम से कम अपने नेताओं को अपनी ताकत का अहसास तो कराएं  | जब तक हिन्दू संगठित नही होगा, उसका दमन होता रहेगा जो आज कश्मीर मे हो रहा है जल्दी ही पूरे भारत मे होगा |
||जय हिंद ||

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