श्रीमती सोनिया गाँधी की अध्यक्षता में बनाई गई "राष्ट्रीय सलाहकार समिति" द्वारा तैयार किया गया प्रस्तावित "सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011" एक कला कानून है जो यदि संसद द्वारा पारित कर दिया गया तो देश का माहौल दूषित हो जाएगा. मुस्लिम, ईसाई आदि अल्पसंख्यक समूहों को बहुसंख्यक समुदाय के प्रति घृणा फ़ैलाने, उन्हें प्रताड़ित करने और बहुसंख्यक महिलाओं के साथ बलात्कार करने एवं सामाजिक वैमनस्य फ़ैलाने के लिए प्रोत्साहन मिल जाएगा.
इस प्रस्तावित कानून का मंतव्य निम्न है --
- इस विधेयक में 'समूह' शब्द का प्रयोग किया गया है. 'समूह' की परिभाषा में केवल धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक वर्ग ही हैं और केवल इस 'समूह' के विरुद्ध घृणा, हिंसा, बलात्कार आदि किया गया अपराध ही अपराध माना जाएगा. यही अपराध बहुसंख्यक वर्ग के लोगों के साथ होते हैं तो उस पर कार्रवाई का कोई प्रावधान विधेयक में नहीं है.
- यदि कोई अल्पसंख्यक व्यक्ति उपरोक्त अपराधों के लिए किसी बहुसंख्यक व्यक्ति या संगठन के विरुद्ध शिकायत करता है तो उसकी जांच किए बिना ही उस व्यक्ति एवं संगठन को अपराधी मानकर उसका संज्ञान लिया जाएगा. इस अपराध की असत्यता सिद्ध करना अपराधी का दायित्व होगा. शिकायतकर्ता की पहचान गुप्त रखी जाएगी.
- शिकायकर्ता की पहचान झूठी पाए जाने पर उसके खिलाफ कार्रवाई का विधेयक में कोई प्रावधान नहीं है. यानि अगर किसी व्यक्ति का कोई अल्पसंख्यक पड़ोसी किसी निजी रंजिश के चलते भी ऐसा कोई आरोप लगा देता है तो उस व्यक्ति का जेल जाना तो तय है. बाद में यदि शिकायत झूठी भी पाई गई तो उस शिकायकर्ता पर किसी कार्रवाई का प्रावधान नहीं है.
- विधेयक में ये मान लिया गया है कि सांप्रदायिक हिंसा केवल बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा ही पैदा की जाती है और अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य कभी ऐसा कर ही नहीं सकते. क्या कोई अल्पसंख्यक व्यक्ति अपराध या हिंसा नहीं करता या नहीं कर सकता ?
- विधेयक में ये भी कहा गया है कि यदि किसी अल्पसंख्यक ने रोजगार या किराये पर घर मांग लिया तो बिना योग्यता या अनुकूलता का विचार किए उसे घर या रोजगार देना होगा, यदि बहुसंख्यक ऐसा नहीं करता है तो वो अपराधी होगा.
- पुलिस व प्रशासन अल्पसंख्यकों का कवच बन जाएगी. कहीं भी अल्पसंख्यकों के विरुद्ध उपरोक्त कोई भी अपराध होता है तो प्रशासन की भी समान जिम्मेदारी होगी. इस प्रकार प्रशासन अपने को बचाने के लिए निर्दोष हिन्दुओं को प्रताड़ित करेगा परन्तु यदि हिन्दुओं के प्रति उपरोक्त अपराध होता है तो प्रशासन को परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी.
- इस विधेयक के अनुसार एक सात सदस्यीय राष्ट्रीय प्राधिकरण बनेगा जिसमें कम से कम चार (अध्यक्ष और उपाध्यक्ष सहित) सदस्य 'समूह' से अर्थात अल्पसंख्यक समुदाय के होंगे, बाकी 3 भी बहुसंख्यक के ही होंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है. राज्य स्तर पर भी इसी आधार पर प्राधिकरण का गठन किया जाएगा. ये प्राधिकरण राज्य एवं केंद्र सरकार को सीधी सिफारिश कर सकता है और सरकारों को इसे सभी संसाधन भी उपलब्ध कराने होंगे.
इस विधेयक में धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव क्यों किया गया ? अपराध तो अपराध है चाहे वह किसी भी वर्ग के व्यक्ति ने किया है.. क्या व्यक्ति को उसके धर्म या भाषा से अपराधी माना जाएगा ? संविधान में कहा गया है कि "कानून के समक्ष सभी समान हैं एवं कानून का सभी को समान संरक्षण प्राप्त है." यह हमारा मौलिक अधिकार है. फिर भाषा और धर्म के आधार पर भेदभाव क्यों ? ऐसे विधेयक की क्या आवश्यकता है जो धर्म व जाति के आधार पर भेदभाव करके संविधान के पंथ निरपेक्ष स्वरुप को और राष्ट्र की एकता और अखंडता को खतरे में डालकर जिहादी आतंकवादियों व अलगाववादियों का क़ानूनी हथियार बन जाए.
क्या इस कानून की अल्पसंख्यकों द्वारा मांग की गई थी ? क्या बहुसंख्यकों ने ऐसे कोई साप्रदायिक हमले किए थे ? यदि इस कानून की इतनी ही जरुरत थी तो इसे जम्मू एंड कश्मीर में क्यों नहीं लागू किया जाएगा ? आज़ादी के 64 सालों बाद ही इसकी जरुरत क्यों महसूस की गई ?
इस विधेयक को तैयार करने वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में सोनिया गाँधी के चुने हुए ऐसे लोग हैं जिनका हिंदुत्व विरोधी भाव सर्वज्ञात है. इस परिषद को विधेयक तैयार करने का अधिकार किसने दिया जब इस परिषद की संविधान व कानून में कोई व्यवस्था नहीं है, ऐसे में इसकी वैधानिकता क्या है ? श्रीमती सोनिया गाँधी कांग्रेस से बड़ी हो सकती हैं परन्तु संविधान व देश से बड़ी नहीं.
jayatu bha'ba
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